श्रीमद् भागवत पुराण के मंगलाचरण को हम साथ में गा सकते है, या पढ़ सकते हैं
श्रीमद् भागवत पुराण को श्रीकृष्ण के वांग्मय स्वरूप के रूप में भी जाना जाता है। वांग्मय स्वरूप अर्थात महर्षि वेद व्यास जी द्वारा रचित श्रीमद् भागवत सुनने मात्र से ही परमात्मा के अस्तित्व की अनुभूति हो जाती है!
श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के षोडश-कला से परिपूर्ण, पूर्णवतार हैं| जयग्रंथ अथवा महाभारत इतिहास ग्रंथ में महर्षि वेद व्यास जी पूर्व में ही श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को सुनाई गई श्रीमद् भगवद गीता को लिपिबद्ध कर चुके थे| इतना भर करने से उन्हें पूर्ण संतोष प्राप्त नहीं हुआ! 4 वेद, 17 पुराण तथा महाभारत ग्रंथ लिपिबद्ध करने पर भी महर्षि वेद व्यास जी को पूर्ण संतोष प्राप्त नहीं हुआ! तब नारद जी ने उन्हें भगवान के रस रूप का वर्णन करने की बात कही| श्रीमद् भागवत पुराण, भक्त और भगवत्ता के रस का अनुभव है, जो कि शब्दों के माध्यम से महर्षि वेद व्यास जी हमे कराते हैं|
विष्णु शब्द का एक अर्थ है, विश्व के हर अणु में जो चेतना शक्ति समाई हुई है| भगवान विष्णु के पूर्ण-कलावतार, श्रीकृष्ण रूपी दिव्य शक्ति के 24 अवतारों समेत, इस पुराण में अनेकानेक भक्त, अन्वेषक ऋषि तथा महर्षियों के जीवन की कथाएँ भी अति प्रेरक एवं उत्साह वर्धक हैं|
श्रीमद् भागवत पुराण के मंगलाचरण को हम साथ में गा सकते है, या पढ़ सकते हैं...